भारत में कोविड - 19 का टीका तैयार करने पर अनुसंधान

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चीन के वुहान शहर में SARS-CoV-2 के प्रकोप के प्रारंभ के छह महीने के भीतर, दुनिया भर में सौ से अधिक कोविड -19 टीका परियोजनाएं (लिंक बाहरी है) शुरू की गई हैं। भारत भी SARS-CoV-2 के खिलाफ टीका विकसित करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है और इस विषाणु की रोकथाम और अंतत: उसे समाप्त करने के लिए लगभग तीस टीका प्रयासों (लिंक बाहरी है) में सहभागी है।
हालांकि, जेनर की खोज, जो चेचक के खिलाफ सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा का विकास करने से संबंधित थी, सैद्धांतिक और व्यावहारिक दोनों रूप से नोवल कोरोना वायरस के लिए भी प्रयोग में है, परंतु कोरोना वायरस के लिए टीका-निर्माण के तरीके अब बदल गए हैं। भारतीय कोविड -19 टीका प्रयासों में नई तकनीक के प्लैटफॉर्म शामिल किए जा रहे हैं, जिनमें विषाणु जैसे कण (वीएलपी), पेप्टाइड्स, विषाणु का वेक्टर, न्यूक्लिक एसिड टीके और पुनः संयोजक सबयूनिट प्रोटीन शामिल हैं।
यह दिलचस्प है कि वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले कई लाइसेंस प्राप्त टीके इन अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करके विकसित नहीं किए गए हैं। परंतु नोवल कोरोना वायरस से लड़ने के लिए, भारत की टीका बनाने वाली कंपनियां बहुत तेज़ी से इन तकनीकों का प्रयोग करके आगे बढ़ रही हैं। इसके अलावा, भारत बीसीजी के टीके का प्रयोग करके कोविड -19 के खिलाफ इसकी सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा की खोज करने के लिए परीक्षण कर रहा है।
एक सफल कोविड -19 टीका मानव प्रतिरक्षा तंत्र को एंटीबॉडी बनाने के लिए प्रशिक्षित करेगा और संक्रमण को रोकने के लिए बीमार करने की जगह विषाणु को बेअसर कर देगा। ऐसा टीका पूरे विषाणु, विषाणु के डीएनए या आरएनए और विषाणु के प्रोटीन का उपयोग करके विकसित किया जा सकता है।
समूचे विषाणु से टीके का विकास
समूचे विषाणु से निर्मित टीके दो प्रकार के होते हैं: निष्क्रिय और जीवित क्षीण। इस प्रक्रिया में वैज्ञानिक या तो एक मारे गए (निष्क्रिय) विषाणु का उपयोग करते हैं या पूरे विषाणु में बदलाव करते (लाइव एटेनुएटेड) हैं ताकि इससे कोई बीमार न हो परंतु प्रतिरक्षा तंत्र विषाणु की पहचान कर सके और इसके सतही प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडी बना ले।
निष्क्रिय या जीवित क्षीण टीके बनाने का पहला कदम विषाणु को रोगी के शरीर से अलग करना है। राष्ट्रीय विषाणु संस्थान (एनआईवी), पुणे ने मार्च 2020 में इटली से आए एक व्यक्ति और उसके करीबी संपर्क में आए लोगों के नाक और गले से स्वैब लेकर भारत में SARS-CoV-2 को सबसे पहली बार अलग करने की रिपोर्ट दी है। इसके बाद एनआईवी ने शीघ्र ही एक स्वदेशी 'मेक इन इंडिया' कोविड -19 टीका विकसित करने के लिए भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड (बीबीआईएल) , हैदराबाद (लिंक बाहरी है) के साथ अपनी साझेदारी की घोषणा की। यह अनुमान लगाया गया है कि एनआईवी-बीबीआईएल, टीके के रूप में SARS-CoV-2 के निष्क्रिय रूप, को विकसित करने पर काम करेगा।
सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और कोडजेनिक्स इंक, यूएसए मिलकर (लिंक बाहरी है) 'वायरल जीनोम डीप्टिमाइजेशन' तकनीक का प्रयोग करके एक जीवित क्षीण कोविड -19 टीके का विकास कर रहे हैं। कंप्यूटर एल्गोरिद्म का उपयोग करके कोरोना वायरस के जीनोम में इस तरह से बदलाव किए जाते हैं कि मेजबान मानव कोशिकाओं में इसकी संख्या में वृद्धि की गति बहुत कम हो जाती है, अत: कोई बीमार नहीं होता है। डीऑप्टिमाइज्ड कोरोना वायरस सेल कल्चर (कोशिका संवर्धन ) माध्यम से कोशिकाओं में विकसित किया जाता है और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया का अध्ययन करने के लिए जानवरों पर इसका परीक्षण किया जाता है। इस चरण को 'पूर्व-नैदानिक' परीक्षण कहा जाता है। ‘द हिंदू’ अखबार में दिए अपने एक साक्षात्कार (लिंक बाहरी है) में आडर पूनावाला, सीईओ, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कहा है कि, "हमारा विषाणु-टीका स्ट्रेन मूल विषाणु जैसा है और यह एक सुदृढ़ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न कर सकता है।" उनके अनुसार, वर्ष 2022 के प्रारंभ में टीका तैयार होने की उम्मीद है।
इसी तरह की तकनीक का इस्तेमाल इंडियन इम्युनोलॉजिकल लिमिटेड (आईआईएल) द्वारा ग्रिफ़िथ विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर किया जा रहा है (बाहरी लिंक)। लेकिन उन्होंने जीवित क्षीण कोविड-19 टीका तैयार करने के लिए ' कोडोन डीओप्टिमाइज़ेशन' तकनीक को अपनाया है। ग्रिफिथ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुरेश महालिंगम कहते हैं, "चूंकि यह टीका एक जीवित क्षयकारी टीका होगा, इसलिए उम्मीद है कि विषाणु के खिलाफ बहुत मजबूत सेल्यूलर (कोशीय) और एंटीबॉडी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया प्रदान करने में यह अत्यधिक प्रभावी होगा।" आईआईएल जीवित क्षीण SARS-CoV -2 टीका के लिए चरणबद्ध नैदानिक परीक्षण करेगा और 2021 के अंत तक इसे बाजार में उतारने की उम्मीद करता है।
भारत बायोटेक के सहयोग से यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-मैडिसन (UWM) और फ्लुजन नामक कम्पनी (लिंक बाहरी है) में कॉरोफ्लू (लिंक बाहरी है) विकसित किया जा रहा जो एक वन-ड्रॉप इंट्रानैसल कोविड-19 टीका है। फ्लुजन के वैज्ञानिकों ने एम2 नामक एक जीन को हटाकर फ्लू विषाणु में परिवर्तन किया है, ताकि विषाणु केवल एक बार ही अपनी संख्या वृद्धि कर सके और इसलिए इसका नाम - एम 2 एसआर (लिंक बाहरी है) या एम 2 'स्व-प्रतिबंधित' रखा गया है। फ्लुजन वैक्सीन डिज़ाइन में कोविड-19 टीका का उत्पादन करने के लिए SARS-CoV-2 स्पाइक प्रोटीन को एम 2 एसआर वाहन ’में सम्मिलित किया जा रहा है। मानव कोशिका में एक बार वायरल प्रतिकृति होने से वास्तव में संक्रमण पैदा किए बिना कोरोना वायरस प्रोटीन का उत्पादन हो सकता है। मानव प्रतिरक्षा तंत्र इन प्रोटीनों को 'बाह्य कण' के रूप में पहचान सकता है और इसके खिलाफ काम करने लगता है।
कोरोफ्लू एक फ्लू वैक्सीन पर आधारित है जिसकी सुरक्षा और सहयता को चरण I और II नैदानिक परीक्षणों में सत्यापित किया जाएगा। फ्लुजन और यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन के शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि सितंबर 2020 तक पशु परीक्षण (पूर्व-नैदानिक परीक्षण ) पूरा हो जाएगा और उत्पादन बढ़ाने और मानव परीक्षणों का संचालन करने के लिए भारत बायोटेक को विनिर्माण प्रक्रियाओं हेतु टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (प्रौद्योगिकी अंतरण) की जाएगी। (लिंक बाहरी है)
विषाणु वाहक-आधारित टीके
वायरस में मेजबान कोशिकाओं में प्रवेश करने की परिष्कृत मशीनरी होती है। वैज्ञानिकों ने विषाणु को वैक्टर अथवा वाहक के रूप में प्रयोग करने हेतु विशेष निर्माण के तरीके की खोज की है। ये वाहक कोशिकाओं में प्रवेश करने में सक्षम हैं, लेकिन कोशिकाओं के अंदर प्रवेश के करने के उपरान्त संख्या वृद्धि नहीं सकते हैं अथवा केवल एक बार प्रतिकृति कर सकते हैं क्योंकि विषाणु प्रतिकृति में मदद करने वाले जीन हटा दिये जाते है। इस तरह के वायरस को कोरोनावायरस स्पाइक या झिल्ली प्रोटीन को कोशिकाओं में ले जाने के लिए वाहक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कोशिका में प्रोटीन के प्रवेश के बाद यह प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए इम्यूनोजन के रूप में कार्य करता है।
यह वायरल वेक्टर तकनीक, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा ChAdOx1 nCoV-19 नामक एक टीका विकसित करने के लिए उपयोग की जा रही है। वैक्सीन सामान्य ज़ुकाम पैदा करने वाले एडेनोवायरस का एक कमजोर रूप है जो SARS-CoV-2 स्पाइक प्रोटीन सीक्वेंस का वहन करता है। ChAdOx1n CoV-19 टीका बंदरों पर सफल रहा है और वर्तमान में मानव परीक्षणों के चरण में है और 1,112 से अधिक स्वस्थ स्वयंसेवकों को इसके अध्ययन के लिए नियोजित किया गया है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने ChAdOx1 nCoV-19 की सुरक्षा और प्रभावकारिता के त्वरित आकलन के लिए परीक्षण के चरण II और III का विलय कर दिया है (लिंक बाहरी है)। संभावना है कि ये परीक्षण नवंबर 2020 तक समाप्त हो जाएंगे। ड्रगमेकर एस्ट्राजेनेका को ChAdOx1 nCoV-19 का लाइसेंस देने के बाद इसका नाम बदलकर AZD1222 रख दिया गया था। हाल ही में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने 1000 भारतीय रुपए प्रति खुराक की अनुमानित कीमत पर AZD1222 की 1 मिलियन खुराक का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने के लिए एस्ट्राजेनेका कम्पनी के साथ एक लाइसेंसिंग समझौता किया है (लिंक बाहरी है)। पूनावाला के अनुसार (लिंक बाहरी है), "ऑक्सफोर्ड के टीके भारत में बनाए और पैक किए जाएंगे।" वह कहते हैं कि सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया इस पर 100 मिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक खर्च कर रहा है।
बीबीआईएल और थॉमस जेफरसन यूनिवर्सिटी (टीजेयू), यूएसए द्वारा एक अलग वायरल वाहक अपनाया जा रहा है। उन्होंने एक कोविड-19 टीका विकसित किया है जिसे CORAVAX ™ (लिंक बाहरी है) नाम दिया है। टीजेयू ने SARS-COV-2 स्पाइक प्रोटीन के लिए एक वाहन के रूप में एक निष्क्रिय रेबीज वैक्सीन का उपयोग किया है ताकि CORAVAX ™ का उत्पादन किया जा सके। टीजेयू समाचार को सूचित करते हुए जैफर्सन वैक्सीन सेंटर (लिंक) के निदेशक मैथियास स्चनेल (लिंक बाहरी है) कहते हैं, "हमारा वैक्सीन उम्मीदवार, CORAVAX ™, वर्तमान कोरोना वायरस के हिस्से से बना है और इसे एक अन्य सिद्ध टीके के साथ जोड़ा गया है जो वाहक का कार्य करेगा।" (लिंक बाहरी है)। वर्तमान में, टीजेयू जानवरों पर COROVAX टीके के किए गए परीक्षण के आँकड़े (डेटा) एकत्र कर रहा है। भारत बायोटेक दिसंबर 2020 तक COROVAX के लिए मानव परीक्षण शुरू करेगा (लिंक बाहरी है)।
एटना बायोटेक में स्थापित Zydus Cadila की एक यूरोपीय अनुसंधान इकाई , रिवर्स जेनेटिक्स (आनुवंशिकी उत्क्रम) तकनीक के साथ उत्पादित खसरे के टीके को वाहक बनाकर एक कोविड-19 वैक्सीन विकसित कर रही है। (लिंक बाहरी है) कोरोनो वायरस प्रोटीन एक जीवित क्षीण पुनः संयोजक खसरा विषाणु आरएमवी (rMV) वाहक टीके में डाला जाएगा। खसरे के संक्रमण से सुरक्षा, प्रभावकारिता और सुरक्षा के लिए आरएमवी (rMV) वैक्सीन का पहले से ही जानवरों और मानव पर परीक्षण किया जा चुका है। यह टीका पूर्व नैदानिक (प्रीक्लिनिकल) चरण में है।
विषाणु सदृश कण (वीएलपी)
प्रेमास बायोटेक (लिंक बाहरी है) विषाणु सदृश कण (वीएलपी) सिद्धांत के आधार पर एक "ट्रिपल एंटीजन टीका" विकसित कर रहा है। इसमें विषाणु जैसी संरचना बनाने के लिए वायरल प्रोटीन को इकट्ठा करना शामिल है और इसे सफलतापूर्वक एचपीवी और हेपेटाइटिस बी के टीकों के विकास के लिए लागू किया गया है। ट्रिपल एंटीजन वैक्सीन आद्यरूप (प्रोटोटाइप) में SARS-COV-2 से तीन प्रकार के प्रोटीन के कई रूप (फ़ार्म) शामिल हैं जिन्हे वीएलपी के आकार में समवेत किया गया है। इस टीके का उद्देश्य शरीर को वास्तविक विषाणु को सक्रिय किए बिना एंटीबॉडी का उत्पादन करने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र को तैयार करना है। प्रेमास वर्तमान में अपने टीके के लिए पशु परीक्षण शुरू करने के लिए विनियामक निकायों के लिए व्यापक रूप से डिजाइन और आवेदन तैयार कर रहा है।
डीएनए टीके
सैद्धांतिक रूप से नोवल कोरोन वायरस का आनुवंशिक कोड डीएनए-आधारित टीका बनाने के लिए उपयोग किया जा सकता है। इसे Zydus Cadila द्वारा SARS-CoV-2 झिल्ली प्रोटीन के खिलाफ डीएनए टीका बनाने के लिए अपनाया जा रहा है और यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कोविड-19 उम्मीदवार टीके के मसौदा परिदृश्य में सूचीबद्ध है (लिंक बाहरी है)। टीका वर्तमान में पूर्व नैदानिक (प्रीक्लिनिकल) चरण में है। Zydus Cadila के डीएनए टीके में कोरोना वायरस विषाणु प्रोटीन के निर्माण के लिए निर्देशों या आनुवंशिक कोड का एक सेट होगा। मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने पर, डीएनए अनुक्रम निर्देश पढ़ा जाएगा और वायरल प्रोटीन में परिवर्तित हो जाएगा। प्रतिरक्षा तंत्र इस कोरोना विषाणु प्रोटीन के खिलाफ एक रक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न कर देगा। अभी तक डीएनए के टीके जानवरों की बीमारियों के लिए स्वीकृत किए गए हैं, लेकिन मनुष्यों के लिए नहीं। डीएनए वैक्सीन का एक फायदा यह है कि यह पारंपरिक टीकों की तुलना में जल्दी तैयार हो सकता है।
प्रोटीन सब-यूनिट टीका
एक सबयूनिट टीका कोरोनो वायरस प्रोटीन के एक हिस्से को प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के लिए इम्यूनोजन के रूप में उपयोग करता है। भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बैंगलोर में शुरू किया गया एक फार्मा स्टार्ट-अप Mynvax, एक प्रोटीन सबयूनिट आधारित कोविड-19 टीका विकसित कर रहा है। Mynvax वर्तमान में पशु मॉडल में कई SARS-CoV-2 स्पाइक प्रोटीन सबयूनिट वैक्सीन उम्मीदवारों का परीक्षण कर रहा है ताकि प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया और सुरक्षा के मामले में सर्वश्रेष्ठ सबयूनिट की पहचान की जा सके। कोविड ज्ञान पर प्रकाशित एक लेख में, Mynvax के सह-संस्थापक, राघवन वरदराजन का कहना है कि कंपनी सबयूनिट उम्मीदवारों को अधिक इम्युनोजेनिक बनाने के तरीके खोजने की कोशिश कर रही है, ताकि अधिकांश लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए उत्पादित एंटीबॉडी की मात्रा पर्याप्त हो। Mynvax ने अनुमान लगाया है कि चरण I के परीक्षण अठारह महीने में शुरू हो सकेंगे (लिंक बाहरी है) ।
पुराने बीसीजी वैक्सीन का पुन: उपयोग करना
हाल के हफ्तों में कोविड-19 के खिलाफ BCG वैक्सीन के सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले गुणों पर काफी बहस हुई है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जो वीपीएम 1002 बीसीजी वैक्सीन का अनन्य लाइसेंस धारक है, ने भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) से निधियां प्राप्त की है, और मई 2020 में एन नायडू संक्रामक रोग अस्पताल, पुणे में मानव परीक्षण के चरण III को शुरू किया है (लिंक बाहरी है)। अध्ययन में मानव स्वयंसेवकों की तीन श्रेणियों को शामिल किया गया है: कोरोनो वायरस संदिग्ध, सकारात्मक रोगसूचक और सकारात्मक स्पर्शोन्मुख। इन उच्च जोखिम वाले स्वयंसेवकों की तुलना प्लेसिबो (बीसीजी वैक्सीन नहीं प्राप्त करने वाले स्वयंसेवकों) के साथ की जाएगी ताकि कोविड -19 रोग की निवारक प्रभावकारिता और नैदानिक गंभीरता को कम करने की क्षमता के लिए वीपीएम 1002 का परीक्षण किया जा सके। पूनावाला के ‘द प्रिंट' में प्रकाशित एक लेख (लिंक बाहरी है) के अनुसार, उम्मीद है कि अगर अध्ययन सकारात्मक परिणाम दे तो इस साल के अंत तक टीका बाजार में आ जाएगा ।
हालांकि, कुछ टीके विकास के अग्रणी चरण में हैं, कुछ निश्चित रूप से आशाजनक हैं, और कुछ परियोजनाएं, यद्यपि नई हैं। भारत और शेष विश्व जल्द से जल्द कोविड-19 टीका विकासित करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, कोई भी देरी से इंकार नहीं कर सकता क्योंकि टीका विकास में पशु और मानव परीक्षण महत्वपूर्ण होते हैं। हमें वैज्ञानिक दृढ़ता के साथ मानव नैदानिक परीक्षणों की विफलता दर पर विचार करना चाहिए, बिना किसी घबराहट और निराशा के साथ। यह अनुमान लगाना कठिन है कि सुरक्षा, प्रभावकारिता, इम्युनोजेनेसिटी, लागत, व्यापक उत्पादन, वितरण, बड़े पैमाने पर टीकाकरण के आधार पर कौन-सा टीका निर्माण कार्य सफल होगा। प्रत्येक टीके के विकास में सफलता और विफलता, दोनों ही संभावनाएं जुड़ी हैं। कोविड-19 को विफल करने का मार्ग आसान नहीं है, फिर भी हमें इन कठिन प्रयासों पर अपनी आशाओं को दृढ़ करने की आवश्यकता है क्योंकि जैसी कि एक कहावत है; ‘मंजिल एक, राह अनेक’
अदिता जोशी, नई दिल्ली स्थित संसृति फाउंडेशन की निदेशक हैं। आप CSIR-IGIB के साथ वैज्ञानिक परामर्शदाता के रूप में भी काम करती हैं।